Thursday, August 5, 2010

व्यवस्था बहुत कम शब्दों को जानती है

सुलभ जी
बी. एन. कॉलेज में इतिहास ऑनर्स का छात्र था जब पहली बार आकाशवाणी, पटना में सुलभ जी से मिला। रेडियो पर लेख पढ़ना चाहता था ‘भक्ति आंदोलन का सामंत विरोधी स्वर।’ सुलभ जी ने उसे उलट-पलटकर देखा और कहा-‘राजू जी, व्यवस्था बहुत कम शब्दों को जानती है।’ उनके इस एक वाक्य ने मुझे काफी प्रभावित किया। फिर और बातें होने लगीं। मेरे प्रिय कवि के बारे में भी पूछा। मैं भूला नहीं हूं कि मैंने आलोक धन्वा का नाम लिया था। आगे उन्होंने एक किताब दी-धूप की एक विराट नाव-हरेकृष्ण झा की काव्य-पुस्तिका, जो मध्य प्रदेश की साम्य पत्रिका की तरफ से मुद्रित हुई थी। मैंने इसे स्वीकार किया और दो-तीन दिनों में समीक्षा जमा कर दी। कविताएं चूंकि राजनीतिक थीं, इसलिए अमूमन मैंने उसका राजनीतिक विश्लेषण ही किया। यह और बात है कि हरेकृष्ण झा ने उसकी तारीफ की तथा देर तक बातचीत की। पता चला, झा जी के नक्सलबाड़ी आन्दोलन के साथ कभी गहरे रिश्ते थे।

विनोद मिश्र
चंद्रभूषण 
वे सब प्रतिबद्धता की फसल काट रहे हैं

शायद बी. ए. का ही छात्र था, जब आरक्षण को लेकर देशव्यापी हंगामा हुआ था। पूरे देश के छात्र समर्थन और विरोध में बंटे हुए थे। इस मुद्दे को लेकर मैं भी अपने मित्रों के बीच बहस छेड़ दिया करता था। एक दिन जोर-जोर से कॉलेज कैंपस में बोल ही रहा था कि दो अपरिचित सज्जनों ने मुझसे थोड़ा एकांत में चलने का आग्रह किया। भीड़ से अलग हुआ और एक औपचारिक परिचय के बाद फिर नये सिरे से बातचीत में भिड़ गया। सज्जनों में इरफान और विष्णु राजगढ़िया थे। विष्णु तो देखने में साधारण ही लगते, लेकिन इरफान काफी ‘बौद्धिक छटा’ बिखेरते थे। उनकी बातचीत का अंदाज काफी गंभीर और बौद्धिकतापूर्ण था, हालांकि उन्होंने सिगरेट भी सुलगायी थी। मुझे भी शरीक किया। बातचीत के क्रम में पता चला कि वे लोग समकालीन जनमत पत्रिका की तरफ से थे। स्टोरी के लिए मैटर का जुगाड़ बिठाने और कॉलेज में आंदोलन की तासीर जानने आये थे। दोनों ने मुझे रामजी राय और प्रदीप झा से मिलने की सलाह दी। मिला भी। इस परिचय के बाद हमलोगों ने नियमित मिलना-जुलना जारी रखा। विष्णु तो प्रायः कम बोलते थे, लेकिन इरफान मुझे अक्सर इस बात के लिए कोचते कि ‘मैं पार्टी में नहीं हूं, इसलिए प्रतिबद्ध नहीं हूं।’ उनका अत्यंत प्रिय सूत्रवाक्य था कि ‘जो पार्टी का कैडर नहीं है, उसकी क्रांतिकारिता पर भरोसा नहीं किया जा सकता।’ वैसे मैं सी. पी. आई. माले का सिम्पैथाइजर अवश्य था, लेकिन पार्टी का बंधन मानने को मन तैयार न था। प्रेमचंद का यह वाक्य कहीं पढ़ रखा था कि ‘मेरी पार्टी अभी बनी बनी नहीं है।’ उसी तर्ज पर मैं भविष्य की पार्टी का इंतजार कर रहा था।

कहना होगा कि इस मेलजोल के साथ ही मन में दुराव का भाव भी पैदा हो रहा था। लोगों के रहने तरीके को लेकर कभी-कभी मैं काफी हैरान और चिंतित हो उठता। इरफान सदैव मोटरसाइकिल से ही चलते और हर आध घंटे पर विल्स सिगरेट फूंकते। मुझे लगता यह पार्टी के पैसे का दुरुपयोग है। एक दिन थोड़ी खीझ होने पर मैंने कह भी दिया था-‘इरफान, अगर प्रतिबद्धता का यही मतलब है तो इस कीमत पर मैं प्रतिबद्ध नहीं हो सकता।’ माले के लड़कों में सिगरेट की बड़ी भारी लत थी। अपने ‘गॉडफादर’ विनोद मिश्र की नकल हो शायद! रंजीत अभिज्ञान भी तब पटने में बहुत सिगरेट पीता था और हमेशा चंदा के नाम पर लोगों से पैसे लेता और भागा फिरता। नये लड़कों में नवीन और अभ्युदय बहुत सिगरेट पीते हैं। संगठन का पीते हैं, यह नहीं कह सकता।

समकालीन जनमत
का विष्णु, इरफान और चंद्रभूषण वाला ग्रुप ‘श्रेष्ठताबोध’ की भावना से भरा हुआ था। एक शाम मैं टहलते हुए महेंद्र सिंह के शास्त्रीनगर वाले फ्लैट पर पहुंचा, जहां वे लोग स्थायी तौर पर रहा करते थे, तो पाया कि सभी किसी गंभीर विमर्श में फंसे हैं। मैंने भी कुछ कहने की हिम्मत (जुर्रत!) की तो तीनों मुझे कुछ इस कदर घूरने लगे मानों आंखों-ही-आंखों में मुझे बता रहे हों-‘यह आपके बूते की चीज नहीं है।’ वे लोग द सेकेंड सेक्स  पर बातें कर रहे थे। माले का यह ‘हिरावल’ दस्ता ‘सेक्स’ को भरपूर जीता था। पार्टी के अंदर ‘सेक्स स्कैंडल’ और यौन-शोषण की कम किंवदंतियां नहीं हैं।

इसी क्रम में फरवरी, 1990 में मेरी शादी होनी तय हुई। जनमत के इस ग्रुप से मैंने शादी में शरीक होने के लिए आग्रह किया। कार्ड दिया ही था कि इरफान ने कहा, ‘चलो एक और जीवन नष्ट हुआ।’ खैर, वे लोग वहां पहुंचे। कमलेश शर्मा भी उनलेगों के साथ थे। लड़कीवाले की तरफ से निवेदिता थीं। मेरे बड़े भाई के साले अमरेन्द्र कुमार भी थे। अमरेन्द्र का मैंने जनमत के लोगों से परिचय कराया। इरफान ने अमरेन्द्र से दार्शनिक अंदाज में पूछा-‘आपको सबसे ज्यादा कौन-सी चीज आतंकित करती है ?’ अमरेन्द्र ने बिल्कुल अपने स्वभाव के अनुकूल जवाब दिया-‘पेड़ से पत्तों का गिरना।’ अमरेन्द्र कुमार को आज भी मैं इसी बिंब के साथ याद करता हूं। यह जवाब इरफान के लायक भी था।

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