Tuesday, August 24, 2010

और नवल जी ने लिखना बंद कर दिया

रामशरण शर्मा
इस घटना के कुछ दिनों बाद मैं अमरेन्दु जीदीपक कुमार गुप्ता (तब वे भी हिन्दी, एम. ए. के छात्र थे) के साथ दरभंगा हाउस गया। वे दोनों  तो अपने वर्ग में चले गये। मैं वहीं सायकिल स्टैंड में बैठा राजेन्द्र जी (सायकिल स्टैंड के कर्मचारी) से बातें  करता हुआ इंतजार करने लगा। एक-आध घंटे बाद वे दोनों आए और मुझसे कहने लगे, ‘यहाँ अकेले बैठे क्या कीजिएगा। नवल जी का ‘‘निराला स्पेशल’’ है इसलिए चलिए आप भी वहीं बैठिएगा।’ मैंने कहा, मुझ ‘बाहरी ’ आदमी को कहाँ ले जाइएगा, नवल जी को अच्छा नहीं लगेगा। वैसे नवल जी से मैं पहले कभी व्यक्तिगत रूप से मिला न था लेकिन मेरा उनके बारे में अब तक का ‘संचित ज्ञान’ था कि वे गुस्सैल हैं और बातचीत में अक्सर उग्र हो जाया करते हैं। शायद हंस कुमार पाण्डेय से कभी सुन रखा था कि ‘नयी पीढ़ी’  पत्रिका के नरेन्द्र से बात करते हुए वे काफी उत्तेजित हो गये थे। इसलिए मैं जाने से परहेज कर रहा था। अंततः मै गया। वर्ग में नवल जी आए। ‘निराला स्पेशल’ में तीन ही छात्र थे, इसलिए मुझ चौथे को ‘ट्रेस’ अथवा ‘लोकेट’ करते उन्हें तनिक देर न लगी। उन्होंने  बैठते ही शक की निगाहों से मुझे देखा और पूछा ‘ये महाशय कौन हैं ?’ अमरेन्दु जी ने बताया कि आप राजू रंजन प्रसाद हैं और इतिहास, एम. ए. में दाखिला लेनेवाले हैं। लिखने-पढ़ने में भी रुचि है और फिलहाल आपको सुनने आए हैं। मेरा नाम सुनना था कि उनके रंग-तेवर बदल गये। लगा जैसे कोई अशुभ सपना देख लिया हो! उनका धैर्य टूट चुका था। बोले, ‘आपही ने जनशक्ति में लेख लिखा है ?’ मैंने ‘जी हाँ’ कहा। फिर क्या था। वे टेपरिकार्डर की तरह चालू हो गये-‘मैंने तो समझा था कि आप कोई बुजुर्ग होंगे लेकिन आपको तो अभी कलम पकड़ने तक की भी तमीज नहीं है। टोह लेते हुए बोले, ‘आप यहाँ किन-किन लोगों से मिलते-जुलते हैं ? खगेन्द्र ठाकुर को जानते हैं आप ?’ ‘केवल नाम से जानता हूँ। व्यक्तिगत रूप से मिला नहीं हूं’-मैंने कहा। ‘क्या आप एम. एल. (माले) में हैं ?’ ‘नहीं तो’ मेरा स्पष्ट जवाब था। कोई सुराग न मिलने पर उन्होंने पुनः पूछा ‘तो फिर आप किसके साथ उठते-बैठते, मिलते-जुलते हैं ?’ उत्तर में मैंने रामशरण शर्मा का नाम लिया था। सही है कि उन दिनों मैं उनके पास आया-जाया करता था। कई बार अमरेन्दु जी भी साथ होते। उन दिनों की शर्मा जी के साथ हमलोगों की तीन-चार तस्वीरें भी हैं। जनशक्ति में मेरे उक्त लेख का यह असर भी हुआ कि नवल जी ने उसमें लिखना बंद कर दिया। शायद हमेशा के लिए।

No comments:

Post a Comment